अपनी उम्र के सर्वश्रेष्ठ समय में सफलता के सर्वोच्च शिखर को छूने वाले,एक से बढ़कर एक उप्लाब्धियां,पद तथा पदक हासिल करने वाले,किसी भी क्षेत्र-विशेष में विशेषता प्राप्त करने वाले,बिना किसी लोभ लालच के देश-सेवा करने वाले,नए-नए अविष्कारों व तकनीकी विशेषता पूर्ण चमत्कृत करने वाले अनुसंधान कर्त्ता,सफलता के नए-नए कीर्तिमान स्थापित करने वाले,विश्व-स्तरीय प्रतियोगिताओं में स्वर्ण-पदक प्राप्त करने वाले तथा और भी न जाने कितने दिग्गज विशेषताओं वाले ये व्यक्ति आज कल बुजुर्ग रूप में क्या बन कर रह गए है....?
अशक्त काया,चिड़चिड़ा स्वभाव,पुराने ख्यालों में,अपनी पूरी दुनिया की यादों में इतराते,अपनी उपलब्धियों का बखान करते, एकाकी जीवन जीते,उदासीन भाव से ज़िन्दगी को मानो घसीटते चलने की एक मजबूरी।
एक फ्यूज बल्ब जो कभी भरपूर रोशनी से जगमगाता था....एक बेवजह का सामान जिसे सिर्फ संजो कर रखा गया है। परिवार का एक बोझ जिसे ढोना तीन-चार बच्चों को भी भारी पड़ रहा है।
एक माता-पिता अपनी सीमित आमदनी में चार-पांच बच्चों को पाल देते है। पेट पर पट्टी बांधकर,अपने निजी खर्चो में कटौती कर अपने बच्चों को पढ़ाते-लिखाते और आत्मनिर्भर बनाते हैं। उन्हें ऊँच-नीच,सही-गलत,अच्छा-बुरा समझाकर ज्ञानवान बनाते है। उनके लिए अपनी हैसियत से बढ़कर सुख-सुविधाएं जुटाते है और अपने भरसक प्रयत्नों से जीवन की बुलंदियों को छूने लायक बनाते है आदि-आदि ......।
मगर जीवन के सांध्यकाल में वही माता-पिता एक बोझ,बेवजह का खर्चा, एक ऐसी असहनीय जिम्मेदारी जिसे तीन-चार बच्चों में से कोई भी वहन/सहन नही करना चाहता.....आखिर क्यों .......?
वास्तव में हमारे ये बुजुर्ग एक अनमोल संपत्ति की तरह होते है जिनके अनुभवों से सीखकर,उनकी शीतल छत्र-छाया में,एक साथ रहकर,उनके साथ सम्मानित व्यवहार कर उनकी महत्ता बनाये रख सकते है | हमारी उनके पक्ष में की गयी स्वीकृति-स्वरुप एक हाँ उनको कितना आत्मिक सुख पहुंचा सकती है........।
उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़कर अपने ही घर में उनके साथ आदर पूर्वक रहकर ,उनकी प्रतिष्ठा को बनाये रखा जा सकता है। उनका आशीर्वाद हमारे घर-परिवार,बच्चों पर कितनी कृपा बनकर बरसता है।
जरा सोचिये.....
दर्शना अर्जुन"विजेता"
Team Udan
उड़ान,द रियल स्टोरी शो @ जरा सोचिये